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ग्राहकों सहित कर्मचारियों को मार्च कराते ले गए कोतवाली, मैं कोरोना दूत हूं के नारे लगवाए


विदिशा।सोमवार को पुलिस वार्ड क्रमांक 3 के रहवासी क्षेत्र में तीन मंजिला कपड़ा का गोदाम खुला पाया गया। इस गोदाम में करीब 60 लोग खरीदारी कर रहे थे। जिन्हें वहां से बाहर निकालकर जुलूस के रूप में पैदल कोतवाली थाने तक लाया गया। जनता कर्फ्यू के बाद भी कपड़ा व्यापारी अपने गोदाम से कारोबार चला रहा था। रहवासियों ने बाहर से आ रहे रोज सैकड़ों लोगों की भीड़ से कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका के चलते पुलिस को सूचना दी।
पुलिस जब गोदाम पर पहुंची तो खबर लगते ही मकान के बाहर ताला लगा दिया। ताला खुलवाने के लिए पुलिस को 10 मिनट तक प्रयास करना पड़ा। पुलिस ने मकान को आगे पीछे से घेर लिया। तब तक पूरे मकान की लाइट बंद कर दी गई। पूरे ग्राहकों को कंबल दरी कपड़ों की गठानों के पीछे छिपा दिया गया। कुछ को तीसरी मंजिल पर छिपा दिया गया था। जूते चप्पलों को एकत्रित कर कर ढंक दिया गया। कुछ को पीछे के गेट से बाहर कर दिया।
मार्च कराती ले गई पुलिस-पुलिस ने वहां मौजूद करीब 60 लोगों को दुकान के कर्मचारियों के साथ पैदल बस्ती और बाजार के बीच से मार्च कराती हुई कोतवाली प्रांगण तक ले गई। इस दौरान सभी से कहलवाया जा रहा था कि हम कोरोना दूत हैं। सिटी कोतवाली थाना प्रभारी सुमी देसाई ने बताया कि दुकान मालिक सहित सभी पर प्रकरण दर्ज किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जांच के दौरान नीचे से ऊपर तक कपड़ों के ग्राहक भरे हुए थे। प्रशासन की गाइड लाइन का पालन तक नहीं हो रहा था। पकड़े गए ग्राहकों और कर्मचारियों को शाम तक प्रांगण में बैठाया गया।
कपड़ों का सबसे बड़ा कारोबार-नेहरू चैक पर ढाबा के नाम से जो कपड़ा का कारोबार चलता है वहां हर प्रकार का कपड़ा मिलता है लेकिन जनता कर्फ्यू के कारण यह कारोबार दस दिन से बंद हैं। मालिक नेहरू चैक पर बंद दुकान के सामने सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक बैठकर ग्राहकों को वार्ड क्रमांक 3 में बने तीन मंजिला मकान पर भेजता था वहां से ग्राहकों को कपड़ा बेच रहा था। इस व्यापारी की दुकान पर जीवन सहित सामाजिक कार्यों में उपयोग आने वाले हर प्रकार के कपड़े मिलते हैं।
निजी स्वार्थ के लिए जीवन दाव पर लगा रहे आज भी लोग-नगर में अब तक करीब दस व्यापारियों की मृत्यु कोरोना संक्रमण के कारण हो चुकी है। ऐसी लापरवाही से कोरोना लगातार फैल रहा है। इससे हालात लगातार खराब हो रहे हैं। उसके बाद भी निजी स्वार्थ के खातिर खुद के साथ अपने परिवार और कर्मचारियों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। जबकि देश में कैसे हालात है। धन खर्च करने के बाद भी अस्पतालों में लोगों को भर्ती नहीं किया जा रहा है।

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