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    * शिक्षा  को निशुल्क दिया जाए ना कि व्यापार ढंग से *

 तर्कसंगत शिक्षा, सुधरो की आवश्यकता

    तर्कसंगत शिक्षा, सुधरो की आवश्यकता

            *  शिक्षा  को निःशुल्क दिया जाए ना कि व्यापार …… *

। * बृजेश पाठक संपादक आजाद समाचार *

     शिक्षा की महत्ता को देश के विकास में स्वीकार तो हमेशा ही  गया, है, लेकिन संसाधनों और दूरदर्शिता के अभाव में शिक्षा क्षेत्र की अनदेखी ही होती आई है, और वर्तमान में भी देखी जा सकती है । 

     पूर्व सरकारों द्वारा एवं वर्तमान सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र पर जितना ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए था वह नहीं किया जा सका है। यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें आजादी के 75 साल बाद भी आज प्रयोग ही किए जा रहे हैं। कभी गांव-गांव स्कूल खोलने की बात होती है तो कभी छोटे-छोटे स्कूलों को बड़े स्कूल में मिलाकर खर्च बचाने की। योजना बनाई जाती है और उसे योजना के तहत कुछ समय तक प्रयोग भी किए जाते हैं । इन प्रयोगों पर करोड़ से लेकर अमौर पर खर्च भी हो जाता है, हद तो यह कि जिस क्षेत्र के पास देश के भविष्य की बुनियाद मजबूत करने की महती निम्मेदारी है, उसे ठेके पर चलाने से भी परहेज  नहीं किया जाता। हमारे माननीय द्वारा

             आज देश के हर कोने में  शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण तो एक समस्या है ही, सरकारी स्कूलों के लिए ठेके पर शिक्षक नियुक्त करने का चलन कई राज्यों में हैं । ना व्यारी के शुरू करने से गरीब और वंचित बच्चों तक ज्ञान की ज्योति पहुंचाने -के लिए बनी सरकारी योजनाओं का अपेक्षित लाभ अभी कोसों दूर है। अबभी  आयोग ने फिर से शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की सिफारिश की है ।

           जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में तर्कसंगत सुधारों की सख्त जरुरत , बड़ी संख्या में स्कूलों को मर्ज करने और शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को तर्कसंगत बनाने का सुझाव दिया गया है। 

          नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार.. चीन की तुलना में भारत में समान नामांकन के आधार पर पांच गुना ज़्यादा स्कूल हैं। कई राज्यों में 50 फीसदी ऐसे स्कूल हैं, जहां 60 से भी कम नामांकन हैं। देशभर में 10 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है। कई राज्यों में शिक्षक के 30 से 50 फीसदी पद खाली हैं। शहरी क्षेत्र में जरूरत से ज्यादा तो ग्रामीण इलाकों में जरूरत से काफी कम शिक्षक हैं। ऐसे स्कूलों की तादाद भी हजारों में है, जहा सस्था प्रधान ही नही है।

     देश में शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें मुनाफाखोरी से दूर रखा जाना चाहिए। संसाधनों के लिए धन जुटाने के कई तरीके हो सकते हैं, जिनका पता लगाया जाना चाहिए। निजी क्षेत्र के सीएसआर फंड का इस्तेमाल किया जा सकता है और उन पर अतिरिक्त कर भी लगाए जा सकते हैं। वर्तमान में ज्यादातर कंपनियां सीएसआर फंड का इस्तेमाल अपने ब्रांड के प्रमोशन में ही करती दिखती हैं।                     

                       इन्फोसिस के पूर्व सीईओ एनआर नारायणमूर्ति का यह सुझाव भी गौर करने लायक है कि देश में स्कूली शिक्षा पर एक अरब डॉलर खर्च करने और दुनिया के 10,000 अत्यंत कुशल रिटायर हो चुके शिक्षकों की सेवाएं लेते हुए सेवारत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। 

 देश का हर एक शिक्षक अच्छे वेतन और सम्मान के हकदार हैं। जब तक ऐसा नहीं होगा, सर्वोत्तम प्रतिभाएं इस क्षेत्र में अपना   करियर नहीं खोज सकेंगी। नीति आयोग की सिफारिशों पर अमल करने से पहले इन बातों पर भी गौर करना होगा।

    आवश्यक है देश का हर एक जनप्रतिनिधि और लोक सेवक अपने बच्चों को शासकीय स्कूलों में पढ़ाऐ तभी अच्छी गुणकारी शिक्षा का लाभ हर एक बच्चों को मिलेगा । 

 सरकार को एक और महत्वपूर्ण कदम धरातल पर उठाना होगा वह कदम है निशुल्क शिक्षा का इसके साथ ही जब भी कोई नौकरी सरकारी निकायों में या प्राइवेट संस्थानों में आवश्यकता के अनुसार नौकरी के लिए कर्मचारी अधिकारी हेतु विज्ञप्ति निकल जाए वह निशुल्क होना चाहिए । विद्यार्थी से कोई भी फीस आवेदन से लेकर परीक्षा आयोजन तक नहीं ली जाए । परीक्षा लेकर परिणाम तत्काल घोषित किए जाएं । आज का युग कंप्यूटर का युग है । इतना ही नहीं सरकार का दायित्व बनता है कि देश में योग्य व्यक्ति सरकारी पदों पर कार्यरत रहे इसके लिए आरक्षण की प्रक्रिया को भी समाप्त करना चाहिए । क्या ? अयोग्य व्यक्ति अच्छा कार्य करेंगे । क्या ? आयोग व्यक्ति अच्छे पुल, पुलिया सड़क का निर्माण कराएंगे या अयोग्य व्यक्ति अच्छी तरीके से स्वास्थ्य का परीक्षण करेंगे । या अयोग्य व्यक्ति अच्छी तरीके से कोई भी नीति का निर्धारण करेंगे ।

     आरक्षण किसको दिया जाए यह नियम भी होना चाहिए आरक्षण का असली हकदार कौन है उस तक सूर्य की किरण का प्रकाश कब पहुंचेगा यह भी शिक्षा का दायित्व बनता है । सिर्फ वोटरों की खातिर ही देश को हिजड़े (आरोग्य ) के हाथ में नहीं रखा जाए ।

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