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 विधानसभा चुनाव में भितरघात  से त्रस्त भाजपा ही नहीं कौंग्रेस भी रही  अपनों ने अपनों के सपनों को डसा ।

 

शिवपुरी जिले की पाँचों सीटों पर अपनों ने दिए जख्म ।

भितरघात करने वाले नेताओं पर कार्रवाई को लेकर राजनैतिक दल सजग ।

 शिवपुरी । आजाद समाचार । विधान सभा चुनाव के दौरान शिवपुरी जिले में न केवल सत्ताधारी भाजपा में जबर्दस्त भितरघात की स्थिति दिखाई दी बल्कि सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद निर्गुट माने जाने वाले दल कांग्रेस की जड़ों में भी तमाम कांग्रेस नेताओं ने  मट्ठा डालने का काम बखूबी किया। जिले में भाजपा में पहले से ही कई फांक की स्थिति थी यहां भाजपा महाराज खेमे, राजे खेमे और नाराज, शिवराज खेमों में बंटी हुई थी यहां नरेन्द्र सिंह तोमर खेमा भी सक्रिय भूमिका में दिखा। 

   सिंधिया गुटके भाजपाईयों ने कुछ सीटों जैसे  करैरा और शिवपुरी एवं पिछोर  में खुलकर भितरघात की तो शिवपुरी, कोलारस,पोहरी सीट पर तोमर खेमा और महाराज खेमा मूल भाजपाई ,भाजपा के प्रत्याशी के लिए काम करने के प्रति अनमना दिखाई दिया, यहां कुछ पदाधिकारियों और पार्षदों की भूमिका भी संदिग्ध दिखाई दी। चुनावी दौर में चुनाव प्रभारियों की रददोबदल का मामला भी खूब चर्चा में रहा। प्रत्यक्ष तौर पर भाजपा के साथ खड़े तमाम दिग्गज कांग्रेस को खाद पानी देते नजर आए, यशोधरा राजे खेमा भी औपचारिक भूमिका में दिखाई दिया। यहां भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र जैन खुद के मैनेजमेंट के सहारे चुनावी रण में सक्रिय दिखाई दिए। अब इस सीट पर कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस को उसके तमाम दावेदारों के अलावा नवागतों की नाराजी का खुलकर विरोध झेलना पड़ा।

हालांकि भाजपा के भीतर करैरा, कोलारस, पोहरी इन तीनों सीटों पर यह स्थिति कहीं अधिक थी।

             करैरा विधानसभा में जहां भाजपा को पूर्व प्रत्याशियों का विरोध झेलना पड़ा वही चुनावी कार्यालय की कमान एक ही गुटके नेता के सहयोगियों के हाथ में थी इस कारण से मूल भाजपाई परेशान दिखाई दिए ।

  कोलारस में सिंधिया समर्थक महेन्द्र यादव को मूल भाजपाईयों के अलावा सिंधिया समर्थक समझे जाने वाले कुछ नेताओं ने सहयोग देने से किनारा किया। इनका रुझान कॉग्रेस के बैजनाथ के पक्ष में नजर आया। पोहरी में भाजपा के प्रत्याशी सुरेश राठ खेड़ा को मूल भाजपाईयों ने पटकने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इनका साथी हाथी अधिक नजर आया, प्रद्युम्र वर्मा को इस लड़ाई में लाने के पीछे भाजपा के इन्ही असंतुष्टों ने अहम भूमिका निभाई जिसके चलते भाजपा की यह सीट खुले तौर पर दिक्कत में मानी जा रही कांग्रेस को यहां भितरघात कम झेलना पड़ी। पिछोर में भाजपा के तमाम  नेता प्रीतम के साथ भले ही खड़े नजर नहीं मगर वहां भाजपा का खुला विरोध करने में भी उनकी सक्रियता कम  दिखाई दी।

अब कांग्रेस जहां भितरघात करने वाले नेताओं को चिन्हित करने में जुटी है ,तो भाजपा में यह दायित्व भाजा जिलाध्यक्ष को सौंपा है। वैसे देखें भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दलों भितरघात का शिकार हुए प्रत्याशी पांचों सीटों पर भितरघात का सबसे  फीडबैक दे पाएंगे क्योंकि वे भुक्त भोगी हैं और जिस पर बीती है उसकी बखान वहीं कर सकता है। अब बात कार्रवाई की करें तो  ऐसे नेताओं को 6 साल के लिए।  निष्कासित करने का दम भर रह मगर कुछ माह बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव के चलते पार्टी ऐसा कर पाएगी इसकी संभावना कम क्योंकि 6 साल की बात तो दूर नेताओं और कार्यकर्ताओं की जरुरत छह माह में ही पड़ने जा रही है।

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