मध्यप्रदेश मेंभाजपा की जीत के देशव्यापी मायने
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भाजपा
की प्रचंड जीत के देशव्यापी राजनीतिक
मायने लगाए जा रहे हैं। चुनाव से पहले
भाजपा और संघ के कई अंदरुनी सर्वे में प्रदेश में भाजपा का पिछड़ता हुआ बताया गया था। इससे भाजपा भी थोड़ी चिंतित हुई थी शुरुआती सूची में प्रदेश के केंद्रीय मंत्रियों तक को मैदान में उतार दिया था। इसके बाद जब उम्मीदवारों की घोषणा की गई तो भाजपा का यह डर खत्म होता नजर आ रहा था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी वर्ष
लाड़ली बहना योजना लागू की थी, तो इसकी आलोचना
भी हुई थी। भाजपा के नेता भी इसे सरकार पर आर्थिक
बोझ समझ रहे थे, लेकिन इस योजना का सच शिवराज
को पता था। विधानसभा चुनाव से पहले ही बहनों के
खातों में पैसे आने लगे। पहले एक हजार फिर 1250
रुपए आए।
कांग्रेस और राजनीति जानकार फिर भी कहते
रहे कि इस योजना का ज्यादा लाभ भाजपा को नहीं
होनेवाला। लेकिन, जब शिवराज चुनावी सभाओं में जाते
तो बहनें उन्हें घेर लेतीं। लिपटकर रोने लगतीं। यह तस्वीर जब सामने आए तो भाजपा के दिग्गज नेता भी निश्चिंत होने लगे कि इस बार सिर्फ मोदी मैजिक ही नहीं शिवराज मैजिक भी चलेगा। यह शिवराज का ही कमाल था कि चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में आगे दिख रही कांग्रेस लगातार पीछे होती चली गई।
भाजपा आलाकमान को पार्टी के अंदरूनी असंतोष
को लेकर बार-बार डराया जा रहा था। इसके बाद
आलाकमान ने मैदान संभाल लिया। गृहमंत्री अमित
शाह ने सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए। हर स्तर
पर असंतुष्ट नेताओं के मनाने की कोशिश की गई।
जनआशीर्वाद यात्राओं में क्षेत्रीय नेताओं को तरजीह
दिया जाने लगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस
क्षेत्र में भी यात्रा लेकर गए, वहीं के नेता उनके साथ
वाहन में सवार रहे। स्थानीय नेताओं को जागृत करने
का परिणाम यह हुआ कि कार्यकर्ता भी मैदान में आ
गए। इस तरह भाजपा ने यह मैदान सामूहिक नेतृत्व
से फतह किया।
भाजपा के सामूहिक नेतृत्व की बात के साथ ही पीएम
नरेन्द्र मोदी का चेहरा लगातार आगे किया गया। पीएम
मोदी अपनी सभी सभाओं में ‘मोदी की गारंटी’ की बात
को आगे बढ़ाते रहे और जनता को पीएम पर पूरा भरोसा
हुआ। इसके साथ ही इसी दौर में पीएम किसान निधि की राशि का किसानों के खाते में ट्रांसफर हुआ, जिससे पीएम मोदी की गारंटी की बात और पुख्ता होती गई और भाजपामध्य प्रदेश में प्रचंड जीत की ओर आगे बढ़ी।
एक तरफ भाजपा अपनी लाइन आगे बढ़ाती रही,
लेकिन कांग्रेस सिर्फ भाजपा की लाइन काटने में जुटी रही। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का खेमा था। सिंधिया के कांग्रेस से जाने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का गुट बन गया। टिकट बंटवारे के दौरान दोनों नेताओं के बीच मतभेदों की खबरें भी सामने आईं। हालांकि दोनों नेता यह बयान देते रहे कि उनके बीच कोई मतभेद नहीं है, लेकिन कांग्रेस के हरकार्यकर्ता इसकी हकीकत को समझते रहे। कांग्रेस गुटों में ही बंटी रही। जहां भाजपा और संघ ने एक-एक वोटर तक पहुंचने की कोशिश की, कांग्रेस जनता तक अपनी बात भी नहीं पहुंचा पाई।
खैर, मध्यप्रदेश में भाजपा की बंपर जीत ने राष्ट्रीय
स्तर पर प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली पर चर्चा छेड़ दी है।
निश्चित ही आने वाले सालों में मध्यप्रदेश की भाजपा
सरकार द्वारा लागू की गई योजनाएं देश के अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों के लिए मिसाल बनने वाली हैं।