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         * एक साथ चुनाव *
            बृजेश पाठक 

यह अच्छा है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली समिति के साथ विधि आयोग भी विचार कर रहा हैं। इस विषय पर विधि आयोग की ओर से भी विचार किए जाने से यह पता चल सकेगा कि लोकसभा संग विधानसभाओं के चुनाव कराने के लिए कानूनों में क्या परिवर्तन करना पड़ेगा?
एक साथ चुनाव में कोई अड्चन है तो यही कि यदि केंद्र या राज्य सरकार पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के पहले गिर जाती है तो क्या होगा?
यह ऐसी अड़चन नहीं, जिसे दूर न किया जा सके। एक साथ चुनाव के सुझाव पर विपक्षी दलों की चाहे जो आपत्ति हो, इसकी अनदेखी नहीं की जी सकती
कि 1967 के पहले लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो होते थे।
एक साथ चुनाव के विचार का विरोध करने वालों को इससे भी परिचित होना चाहिए कि ओडिशा और आंध्र विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होते हैं। इस विचार के विरोधी यह जो तर्क देते हैं कि एक साथ चुनाव कराने से जनता के समक्ष दुविधा पैदा हो सकती है । उसमें इसलिए कोई दम नहीं, क्योंकि ओडिशा और आंध्रप्रदेश के मतदाता यही

प्रकट करते चले आ रहे हैं कि उन्हें लोकसभा संग विधानसभा चुनावों में कोई समस्या नहीं।
स्पष्ट है कि जनता के हितों की फर्जी आड़ ली जा रही है जो भी दल एक साथ चुनाव का विरोध कर रहे हैं, वे वस्तुतः जनहित और देशहित से अधिक महत्ता अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों को दे रहे हैं।
यह किसी से छिपा नहीं कि रह-रह कर होने वाले विधानसभा चुनाव जनकल्याण और विकास के कामों में बाधा खड़ी करने के साथ किस तरह देश के संसाधनों के लिए बनते हैं। एक साथ प्रायः यह भी दलील देते हैं कि ऐसा करने से क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा। यह दलील भी खोखली ही है, क्योंकि ओडिशा और आंध्र ने यह मांग नहीं की कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग कराए जाएं।
उचित यह होगा कि एक साथ चुनाव के. विरोधी दल अपने निराधार विरोध का परित्याग करें और यह समझें कि इस मामले में उनकी ओर से जनता के हितों की जो आड़ ली जाती है, उसका कोई मूल्य नहीं।
वे आम जनता से पूछेंगे तो वही जवाब मिलेगा, जो ओडिशा और आंध्रप्रदेश की जनता का रहता है। कुछ दल जनता की आड़ लेकर ईवीएम का भी विरोध करते हैं, लेकिन तथ्य यही है कि आम लोग मतपत्रों के जरिये चुनाव के पक्ष में नहीं। एक तो उन्हें ईवीएम पर यकीन है और दूसरे, वे इससे भी अवगत हैं कि मतपत्रों से चुनाव में किस तरह धांधली होती थी।
एक साथ चुनाव और ईवीएम पर राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं की श्रय को जनता की आवाज बताकर देश को गुमराह करने का ही काम कर रहे हैं।

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