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क्या सचमुच शापित है अयोध्या ? अपने शासकों से अनबन को लेकर भरी पड़ी हैं इसकी लोक कथाएं….

भारतीय लोकतंत्र में एक अनावश्यक बुराई रही है कि जिस क्षेत्र से सत्ताधारी पार्टी चुनाव जीतती है वहीं विकास कार्य होता है, वहीं रौनक रहती है । जहां से सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि नहीं चुने जाते हैं, वहां की सड़कें भी वीरान हो जाती हैं ।
तक उन क्षेत्रों को पर्याप्त रोशनी के लिए बिजली भी नहीं मिलती. प्रोजेक्ट ठप पड़ जाते हैं, नई योजनाएं तो दूर की कौड़ी हो जाती हैं ।

क्या कुछ ऐसा ही एक बार फिर अयोध्या के साथ होने वाला है? जबसे केंद्र और राज्य में सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को संसदीय चुनावों में यहां पराजय मिली है, सोशल मीडिया पर लोग अयोध्या के शापित होने की बात करने लगे हैं. उन्हें इस बात का डर है कि एक बार फिर अयोध्या पर सीता माता के श्राप की छाया तो नहीं पड़ गई है ?

एक बार टीवी चैनल से बात करते हुए ‘अयोध्या के राजा’ के रूप में जाने जाने वाले बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा ने कहा था कि स्थानीय किंवदंती के मुताबिक, जब भगवान राम ने अफवाहों की वजह से माता सीता को अयोध्या से बाहर निकाला था, तो उन्होंने श्राप दिया था. कई लोगों का मानना है कि इस अभिशाप की वजह से ही शहर में कभी भी तीव्र गति से विकास नहीं हुआ ।

जिस अयोध्या में कुछ साल पहले तक एक भी बढ़िया होटल नहीं था, वहां अब फाइव स्टार होटल बनाने की परमिशन मांगने वालों की लाइन लग गई है. अयोध्या में फाइव स्टार होटल बनाने की अनुमति मांगने के लिए प्रशासन को 100 से ज्यादा आवेदन मिले हैं ।

पौराणिक कथाओं की मानें तो अयोध्या को किसी ने बसाया नहीं था. इस शहर ने अपने आप ही आकार ले लिया और साकेत नाम से इसकी पहचान बन गई. भारत में सात धार्मिक शहरों की चर्चा होती है, जिसमें हर शहर की उत्पत्ति की कोई न कोई कहानी है पर अयोध्या शहर कैसे बना इसकी कोई कहानी नहीं है. जैसे काशी के बारे में कहा जाता है कि यह शंकर भगवान के धनुष पर स्थित है । द्वारका के बारे में कहा जाता है कि इसे कृष्ण ने बसाया पर अयोध्या की कोई किवदंती भी नहीं है ।

राम के पहले उनके कई पुश्तों ने यहां राज किया है ।कालिदास लिखते हैं कि राजा दशरथ के समय तक अवधपुरी समृद्ध, सुंदर और अच्छी तरह से किलेबंद शहर था. समय के साथ अयोध्या के नाम बदलते रहे जैसे कोसलपुरी, साकेत आदि. लेकिन जिस तरह यहां का इतिहास शैव धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, वैष्णव धर्म आदि का केंद्र बनता रहा, उससे यही लगता है कि यह शहर हमेशा आबाद रहा होगा. फिर भी इसे शापित क्यों कहा जाता है, यह समझ में नहीं आता है ।
की प्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार मृणाल पांडेय एक ऑर्टिकल में लिखती हैं कि 1858 की सर्दियों में विष्णु भट्ट ने जिस भयभीत शहर को देखा, वह निश्चित रूप से त्रेता युग की चमचमाती पौराणिक अयोध्या नहीं थी । अमृतलाल नागर ने 1957 में जो अयोध्या देखी, उसके स्मारकों पर घास-फूस उग आए थे और लोग ग़दर के बाद हुए अपमान को साझा करने से कतराते थे, वह फिर भी अलग थी. वाल्मीकि से लेकर भवभूति और विद्यापति तक के कवियों और लोकगीतों के अनाम रचनाकारों ने राम राज्य की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, जिसने एक निर्दोष महिला सीता को दंडित किया ।

पांडे लिखती हैं कि अयोध्या के युवराज राम का जन्म चैत्र में हुआ था, जो हिंदू नववर्ष के पहले महीने में आता है. तब से, चैती गीतों में राम का नाम शामिल है । उनकी मां का विलाप आज भी पूरे भारत-गंगा के मैदानों में लोकप्रिय चैतियों में गूंजता है. ‘किन मोरे अवध उजारी हो, बिलखैं कौशल्या/ राम बिना मोरी सूनी अयोध्या/कोउ समुझावत नाहीं… (रानी कौशल्या रोती हैं, ‘किसने मेरी अयोध्या को बर्बाद कर दिया और मेरे राम को भगा दिया?/ कोई समझदारी से बात करने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा है ?’

शुद्ध सनातन संस्‍था के फाउंडर अजीत कुमार मिस्र अपनी फेसबुक पोस्‍ट में लिखते हैं कि ‘जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहूं भय बिसराई।।’ श्रीराम अयोध्यावासियों से कहते हैं कि अगर मैं भी कुछ अनीति की बात कहूं तो आप सभी भय को त्याग कर मुझे रोक देना .तभी नारद वाल्मीकि से कहते हैं कि -रामो राजम उपासित्वा ब्रह्मलोकं प्रयास्यति।। यानि राम अपने राज्य की उपासना करने के बाद ब्रह्मलोक चले गए .. आखिर राम क्यों अपनी अयोध्या का शासन न करके उसकी उपासना करते रहे .. क्योंकि राम जानते थे कि अयोध्या और वहां की प्रजा का मिजाज किसी भी शासन को स्वीकार नहीं करता . मिश्र लिखते हैं कि यही कारण रहा कि राम ने पहले अपने वंश के राजाओं का इतिहास देखा और जब वो ये जान गए थे कि अयोध्या किसी की नहीं सुनती तो वो ब्रह्मलोक जाने से पहले अयोध्या किसी को नहीं सौंप गए . न तो अपने पुत्रों लव और कुश को और न ही अपने भाइयों को ।

राम ने अयोध्या किसी को नहीं दी. दोनों पुत्रों यानि कुश को कसूर ( पंजाब) और लव को लाहौर में राज्य की स्थापना करने का आदेश दिया. शत्रुघ्न के पुत्रों को मथुरा तो लक्ष्मण के पुत्रों को लखनऊ का क्षेत्र दिया । राम अपने साथ अयोध्या की जनता को ही नहीं उसके सभी प्राणियों यहां तक की पशु पक्षियों को भी अपने साथ ब्रह्मलोक ले गए और अयोध्या वीरान हो गईं. कहा जाता है कि अयोध्या की देवी ने खुद कुश के पास जा कर
अयोध्या को फिर से बसाने की प्रार्थना की , लेकिन अयोध्या फिर वैसी नहीं रह गईं जैसी श्रीराम के वक्त थी.

राम जानते थे कि ये वही अयोध्या की जनता है । जिसने उनके पूर्वज राजा सागर के पुत्र असमंजस को राज्य से निकालने के लिए विवश कर दिया था, क्योंकि असमंजस अयोध्या के बच्चों को सरयू में डूबो कर मार डालता था.

ये वही अयोध्‍या है जो राजा दशरथ के राम को वनवास पर भेजे जाने के फैसले का विरोध करते हुए राम के साथ चल पड़ती है. और ये वही अयोध्‍या है जो सीता की पवित्रता पर सवाल उठाकर उनकी अग्नि-परीक्षा सुनिश्चित करवाती है । अयोध्‍या की अपने शासकों से जरा कम ही बनती है….

लोकतंत्र में एक अनावश्यक बुराई रही है कि जिस क्षेत्र से सत्ताधारी पार्टी चुनाव जीतती है वहीं विकास कार्य होता है, वहीं रौनक रहती है। जहां से सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि नहीं चुने जाते हैं, वहां की सड़कें भी वीरान हो जाती हैं ।

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