भूख से तड़पते आदिवासी और राशन हड़पते अधिकारी ।
शिवपुरी। आजाद समाचार । शिवपुरी जिले की आज भी यही कहानी कहीं दूर जंगल के उस कोने में, जहाँ विकास की किरणें तो अब तक नहीं पहुँची । लेकिन अधिकारियों की लूट की रोशनी चमक रही है, आदिवासी समाज भूख से बिलबिला रहा है। पेट की आग ऐसी है कि उनके सपनों में अब चावल, आटे की बोरियाँ और राशन की दुकानों से उड़ती खुशबू ही दिखती है। लेकिन क्या करें, उन्हें ये सपने असलियत में नहीं मिलते। असल में राशन की बोरियाँ तो किसी और की तिजोरी में सुरक्षित पहुँच जाती हैं—जी हाँ, हमारे प्यारे और कर्मठ सरकारी अधिकारी। आदिवासी सोचते हैं, “राशन कब आएगा?” और अधिकारी सोचते हैं, “कितना जाएगा?” यह किस्मत का खेल देखिए, आदिवासी हर महीने की 1 तारीख को राशन की दुकान की ओर ललचाई नजरों से देखते हैं, वहीं अधिकारी उस तारीख से पहले ही दुकान के पिछवाड़े से माल गिनकर भिजवा देते हैं। आदिवासियों को खाली बोरी और सूखी हवा से ही संतोष करना पड़ता है, जबकि अधिकारियों की थाली में साग, चावल और मिठाई सजती है। जब भूखे आदिवासी दुकानदार से पूछते हैं, “भैया, राशन कब मिलेगा?” तो जवाब आता है, “अभी नहीं आया। यह चमत्कार है हमारे सिस्टम का! जहाँ भूखे पेट सोते आदिवासियों के लिए कोई बजट नहीं होता, लेकिन अधिकारियों की अलमारियाँ हमेशा भरी रहती हैं। लगता है, सरकारी नीति कहती है—”राशन गरीबों का है, पर हक़ अमीरों का।” यह बात और कोई नहीं शिवपुरी जिले के सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन का कहना है ।